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साधु को शास्त्र भेंट नहीं दान दिया जाता है ,भेंट और दान में अंतर होता है |

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मन्त्र का पाठ करने से कर्मों कि निर्जरा होती है |

विद्या उसी को प्राप्त होती है जो एकाग्र होता है |

डोंगरगढ़ – संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान है | आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने कहा की अभी आपके सामने भिन्न – भिन्न व्यक्तियों द्वारा श्रीफल चढ़ाया गया | जनता बहुत सारी है सबको यह मौका नहीं मिल पाया | सभी को हाथ जोड़कर श्रीफल चढाने का सौभाग्य मिलता तो अच्छा होता | हम लोग भिन्न – भिन्न परंपरा तो चालू कर देते हैं लेकिन उसका अंत कैसे होगा ? शास्त्र भेंट नहीं होता, शास्त्र दान होता है | ये लोग अभी भेंट और दान में भी अंतर नहीं समझते | ये सब एक प्रकार से विद्वत जन देखते हैं और अध्ययन करते हैं फिर उसको प्रेषित करते हैं | जिन्होंने कुछ नहीं चढ़ाया और हाँथ को ही श्रीफल बना लिया और जिसकी पूजा चल रही है उसमे अपने भाव को समर्पित कर दिया | ध्यान करने से पूर्व में कई प्रकार कि मुद्रा हो सकती है | एक बार एक मुद्रा कि किताब पढ़ रहा था उसमे एक मुद्रा थी जिसको शांति मुद्रा कहते हैं | मन में शांति, देह में शांति और प्रत्येक जीव को शांति प्राप्त हो यह भावना रखी जाती है | हाँथ जोड़ने का अर्थ केवल भगवान के सामने जोड़ रहे ऐसा नहीं यह मुद्रा सबकी शांति के लिये भी होती है | परिस्तिथियाँ बदलती रहती है कभी गर्मी, कभी सर्दी, कभी वर्षा, कभी अकाल – विभिन्न परिस्तिथियाँ आती रहती है | एसी परिस्तिथियों में विषमता, समता दोनों पलती रहती है | अब इनसे हम कैसे बचे सवाल ही नहीं होता ? स्वास लेने से प्राण वायु आ जाती है | वायु एक स्थान से दूसरे स्थान आती – जाती है, जहाँ खाली होता है वहाँ वायु चले जाती है | पाठ, स्तुति पाठ पढ़ते हैं उसमे श्रमणों के मुख से भी यही बात निकलती है कि घबराओ नहीं स्तिथि को हम सम्हाल सकते हैं | परिस्तिथि को हम व्यवस्थित कर सकते हैं | उन्होंने कहा विद्या उसी को प्राप्त होती है जो एकाग्र होता है | जो अनेक परिस्तिथियों में झुलता है उस व्यक्ति को विद्या प्राप्त नहीं होती है | एक स्तर पर आ जाओ तो विद्या जिसे प्राप्त है तो बैठे – बैठे वह गर्मी में भी शीतलता और ठंठ में भी गर्मी का अहसास करता है | विपरीतता में भी शांत रहता है | मन्त्र का पाठ करने से कर्मों कि निर्जरा होती है | जिसको मन्त्र में विश्वास होता है वह शांति और साहस के साथ इसका जाप करता है | बड़ी – बड़ी साधना करने वाले भी इसकी ओर जाते हैं | उस ओंकार के लिये जो पंच परमेष्ठी का प्रतिक है “ओंकाराय नमो नमः”| यह पंच परमेष्ठी का शार्ट फॉर्म है “ओंकाराय नमो नमः”| इतनी साधना करने वाले योगी लोग भी भगवान के शरण, चरण में उस पाठ का अर्थ, रहस्य सब कुछ प्राप्त करते रहते है | अच्छे – अच्छे सूर, वीर, धीर, गंभीर भी सब नतमस्तक होने लग जाते हैं | एक छोटा बालक भी भगवान के सामने घुटने टेक देता है तो उसके कर्मों कि निर्जरा हो जाती है | उसे विश्वास दिलाओ बस | भगवान को साक्षी बनाकर आप पूजन का मंगल अष्ट द्रव्य को समर्पित करते हैं देव और गुरु के सामने | जल भी आप चढाते हैं तो जो स्थान जलनशील है उसे भी वह मिटाने कि क्षमता रखता है | जल भाव से भरा और कलश जल से भरा है | संसार में कोई तन से दुखी तो कोई मन से दुखी है | जिसके पास जितना धन वह उतना ज्यादा दुखी है | जिसके पास धन कम है वह भी दुखी है | समता भाव रखना चाहिये, आप संतोषी बनो वही उत्तम है | जल में भी कर्मो कि निर्जरा करने कि शक्ति विद्यमान है इसके लिये आँखों का पानी भी पर्याप्त है | हर बात में मन, वचन और काय में औपचारिकता के कारण झूठ भी सफेद हो गया है | इसके कारण पाप बंध होता है | जिस प्रकार श्रावक भगवान कि पूजन में अष्ट मंगल द्रव्य चढाते हैं उसी प्रकार श्रमण भी गद – गद भाव से अष्ट मंगल द्रव्य चढाते हैं और अपने माथा को ही श्रीफल के रूप में चढाते हैं | हम क्यों मांगे, बिन मांगे ही सब कुछ उपलब्ध है | सिद्ध चक्र मंडल विधान में मांडना बनाने, हवन, धूप आदि विसर्जित करते है तो उसके माध्यम से हमारे असाता कर्म का उदय नष्ट होता है | मैना सुंदरी – “मै न सुंदरी”, यह सुन्दरता के कारण प्रसिद्ध नहीं हुई बल्कि इसने मुनि द्वारा बताये गए सिद्ध चक्र मंडल विधान को अष्टानहिका में अच्छे भाव से किया था और उसके गंदोधक को कोढियों के ऊपर छिड़कने से इनके पति के साथ – साथ 700 कोढियों का कुष्ठ रोग दूर हुआ था | मिताक्षरों के द्वारा हम भगवान कि, पंच परमेष्ठी कि पूजा करें, शांत भाव से भगवान कि भक्ति करते रहें | शार्ट में नहीं करें | आप अभी भगवान नहीं बने हो तो भगवान को याद करोगे तो भविष्य ठीक होगा |आज आचार्य श्री को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य  मनोज जी जैन, सीमा जी जैन, विद्या  परिवार राजनंदगांव छत्तीसगढ़ निवासी को प्राप्त हुआ जिसके लिए चंद्रगिरी ट्रस्ट के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन,कोषाध्यक्ष सिंघई सुभाष चन्द जैन,महामंत्री  निर्मल जैन, मंत्री चंद्रकांत जैन, कार्यकारी अध्यक्ष विनोद बडजात्या, सिंघई निखिल जैन, सिंघई निशांत जैन,  मनोज जैन, प्रतिभास्थली के अध्यक्ष  प्रकाश जैन (पप्पू भैया), श्री सप्रेम जैन (संयुक्त मंत्री) ने बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें दी चंद्रगिरी ट्रस्ट के अध्यक्ष ने बताया कि आचार्य श्री ससंघ के सानिध्य में दिनांक 1 जनवरी 2024 को प्रातः 8 बजे १००८ श्री चन्द्र प्रभ भगवान का महा मस्तिकाभिषेक, शांति धारा, पूजन, आदि हर्षोलास के साथ किया गया | संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ के दर्शन के लिये उनके भक्त सम्पूर्ण भारत से एवं विदेशों से भी आ रहे है ज्यदातर छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, इम्फाल, यु.एस.ए. आदि जगहों से आ रहे है | यहाँ आने वाले भक्तों कि समुचित (आवास, भोजन आदि) व्यवस्था ट्रस्ट द्वारा कि गयी है | उक्त जानकारी चंद्रगिरी डोंगरगढ़ के ट्रस्टी निशांत जैन (निशु) ने दी है |

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