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ग्रहण और पाचन में अंतर है | पढने के बाद उसका चिंतन आवश्यक है – आचार्य श्री विद्यासागर महाराज

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डोंगरगढ़( क्रांतिकारी संकेत) गाय प्रातः जंगल की ओर जाती है और भिन्न – भिन्न स्थानों में जाकर चारा जो घास – फूस आदि जो उपलब्ध होता है उसे चरना प्रारंभ कर देती है | उनको कोई थाली नहीं परोसता और न ही किसी विद्यालय में उनको सिखाया जाता है की क्या खाना, क्या पीना है | जंगल में भिन्न – भिन्न वनस्पति होती है लेकिन गाय सूंघकर केवल खाने योग्य वनस्पति का ही सेवन करती है और जो खाने योग्य नहीं होती (विषाक्त वनस्पति) का सेवन नहीं करती है | सुखा खाती है हरी को देखती तक नहीं और आपको सुखा तो कभी पसंद आता नहीं | आहार संज्ञा एक ऐसी संज्ञा है जिसमे हेय और उपादेय का बोध आपको करना पड़ता है | दिन में खाती है और रात में जुगाली के माध्यम से पचाती है | उदाहरण के माध्यम से आचार्य श्री ने बताया की गाय रात में उसका चरबन करके लार से समिश्रण कर दिनभर खाया उसे पचा देती है | खाना अलग वस्तु होती है और पचाना अलग है | पचाये बीना रक्त आदि में परिवर्तित नहीं होता है | पचाने में विलंभ होता है तो वह जब तक पूरा नहीं पचेगा तब तक नए शिरे से नहीं खाती | बिच – बिच में डकार भी लेती है | स्वास और निःस्वास के माध्यम से वायु को ग्रहण और निष्काशित कर देती है | सारी क्रियाएं बीना प्रशिक्षण और बीना विद्यालय के होती है | आहार संज्ञा मतलब ईच्छा का होना| बच्चो को जब तक नहीं खिलाना जब तक उनकी ईच्छा न हो | ग्रहण और पाचन में अंतर है | श्रमणों को भी समझना चाहिये कि हम कहा अवैध रूप से काम कर रहे हैं | दिन में गाय, पशु, पक्षी खाकर आ जाते हैं और चरबन (जुगाली) करते हैं | जो चरबन नहीं करते वे बिल्ली, कुत्ता, सिंह, खरगोश आदि होते है | इसी प्रकार आप लोगो को जो दिन में पढाया / सुनाया (प्रवचन/स्वाध्याय) जाता है उसे रात में चिंतन करना चाहिये | रात में लाइट जलाकर स्वाध्याय नहीं करना चाहिये | यदि कही लाइट पहले से जल रही हो और आप उसके निचे जाकर पढ़ते हैं तो उस लाइट के द्वारा हो रहे जीवों के घात के दोष में आप भी भागिदार होंगे | हमारी सेवा के लिये सूर्य देवता नियुक्त है और आप लोग उसके सामने से भाग जाते हो | हम तो आप लोगो से ही परहेज करते हैं | दिन के 12 घंटे समय पर्याप्त है सभी कार्य करने के लिये और रात के 12 घंटे सभी कार्य और सभी जनों से परहेज हो जाता है | विशेष ग्रन्थ के स्वाध्याय के बाद चर्चा करते हैं | जिस प्रकार विशेष भोजन विशेष बच्चों को ही दिया जाता है जो इसे अच्छे से पचा सके उसी प्रकार विशेष ग्रन्थ का स्वाध्याय हर किसी को नहीं कराया जाता है | इसके लिये भी योग्य व्यक्ति का होना आवश्यक है | पहले हमने जो धर्मोपदेश दिया है उसको पहले समझो और दूसरों को भी पढ़ाओ तब आगे और देंगे | जो वर्षों पढ़कर प्राप्त नहीं होता वो 15 मिनट या आधा घंटे के प्रवचन में प्राप्त हो जाता है | हमारे लिये कहा गया है कि जो पाठ्यक्रम में है उसी को पढो और पूछो | दूसरे के प्रश्न को बार – बार घूमा – घूमा कर मत पूछो | इससे आपका कुछ भला होने वाला नहीं है | ग्राहकों कि पहचान समझते हो | ग्राहकों को मनाना सीखो | व्यवहार मीठे रखो | नाती के उम्र वाले को भी दद्दा कहो, कक्का कहो | ये सब विद्यालय के बिना हुआ | आपके पास भी संज्ञा है और उसके पास भी संज्ञा है | माँ ज्यादा रसोई नहीं बनाती ताकि बच्चा और न मांगे | मांग ले तो बेटा कल | तो बेटा सोचता है कि कल और नए व्यंजन खाने को मिलेंगे | माँ जानती है कि बच्चा यदि ज्यादा खायेगा तो उसे पचा नहीं पायेगा और बीमार हो जायेगा| इसलिए कल कि छुट्टी करने कि अपेक्षा कम खाओ | समय के अनुसार भूख लगती है तो समय पर भोजन करना चाहिये नहीं तो भूख मर जाती है फिर खाने कि इच्छा नहीं होती फिर बिना इच्छा के खाओगे तो उलटी हो जाएगी | उसी प्रकार जितना स्वाध्याय करे हो पहले उसका चिंतन करो फिर आगे का सोचो तभी उसकी सार्थकता है | कृत, कारित, अनुमोदन यह महत्वपूर्ण करण माने जाते है | जीवो के वध में वध हो रहे है और वहाँ आप कुछ कहते नहीं तो आप उसे समर्थन दे रहे हो | आज आचार्य श्री को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य श्रीमती कुसुम जी जैन, श्री सुकमाल जी जैन, पारस हैंडलूम परिवार रायपुर छत्तीसगढ़ निवासी को प्राप्त हुआ जिसके लिए चंद्रगिरी ट्रस्ट के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन,कोषाध्यक्ष सिंघई सुभाष चन्द जैन,महामंत्रीनि निर्मल जैन, मंत्री चंद्रकांत जैन, कार्यकारी अध्यक्ष  विनोद बडजात्या, सिंघई निखिल जैन, सिंघई निशांत जैन मनोज जैन, प्रतिभास्थली के अध्यक्ष  प्रकाश जैन (पप्पू भैया)   सप्रेम जैन (संयुक्त मंत्री) ने बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें दी | संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ के दर्शन के लिये उनके भक्त सम्पूर्ण भारत से एवं विदेशों से भी आ रहे है ज्यदातर छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, इम्फाल, यु.एस.ए. आदि जगहों से आ रहे है | यहाँ आने वाले भक्तों कि समुचित (आवास, भोजन आदि) व्यवस्था ट्रस्ट द्वारा कि गयी है | उक्त जानकारी चंद्रगिरी डोंगरगढ़ के ट्रस्टी निशांत जैन (निशु)ने दी है |

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