राजनांदगांव। समाचार पत्रों में गलत सलत खबरें छापने वाले संवाददाता को संपादक कैसे सहन करते हैं या संपादक को स्वयं पता नही की पत्रकारिता किस चिड़िया का नाम है। कल के अखबार में प्रकाशित समाचार में खबर बनाई गई हेडिंग लगाया गया गैस एजेंसियों में केवाईसी, उमड़ रही भीड़ , इसमें शुरवात किया गया *भाजपा सरकार ने बीपीएल महिलाओं को गैस सिलेंडर में पांच सौ सब्सिडी देने कि ऐलान किया है।* संपादक ने क्यों नहीं ध्यान रखते उन लिखने वाले लेखक जिसे मुझे पत्रकार बोलने में भी शर्म आती है के पास किस राज्य की भाजपा सरकार के ऐलान कि कापी हाथ लगी जिसमें उपभोक्ताओं को गैस एजेंसी से केवाईसी कराना अनिवार्य है लिखा। दूसरी बात अंतिम तिथि भी 31 मार्च रखी गई यह भी वह लेखक को किस सूत्रों ने बताया और यह भी लेखक को पता है कि पत्रकार सूचना का सूत्र बताने बाध्य नहीं किया जा सकता है।
यहां हम बात कर रहे थे बिना जानकारी और संबंधित का पक्ष जाने समाचार लिखना चाहते हैं तो समाचार एक पक्षीय बनेगा और बल्कि गलत सलत खबरें बनने कि संभावना अधिक रहती हैं। यह सही है कि एजेंसियों में भीड़ उमड़ी जा रही है, इसके लिए भी वे पत्रकार वास्तव में जिम्मेदार हैं जो भ्रमित समाचार बनाकर सनसनी फैलाना चाहते हैं। एक स्थानीय समाचार पत्र में जिसमें यह समाचार छपा उनको यह जरुर पता चल गया कि अभी सिर्फ उज्जवला कनेक्शन धारकों का केवायसी किया जा रहा है अन्य श्रेणी के उपभोक्ताओं का केवायसी नही किया जा रहा है। सर्वप्रथम लेखक और समाचार पत्र के संपादक जो इस तरह के सनसनी बनाने वाले रिपोर्टर पर ध्यान रखें कि क्या यह खबर हमारे पत्र में छपने लायक है या नहीं,इस समाचार छपने से जनहित या शासन हित हो सकता है क्या। समाचार की वास्तविकता क्या है क्या समाचार से समाज पर प्रभाव पड़ता है। या यह समाचार केवल सफेद कागज को काला कर कागज, समाचार पत्र, रिपोर्टर तथा संपादक की वैल्यू पर प्रभाव डालता है।
लेखक को यही पता नही की केवाईसी क्यों कराईं जा रही है इससे किन किन उपभोक्ताओं को भविष्य में क्या प्रभाव पड़ेगा, क्या यह केवल छत्तीसगढ़ या चुनाव संपन्न राज्यों में अथवा पूरे देश में हो रही है। लेखक को यह जानकारी मिली जनता में आक्रोश है तो समाचार पत्रों का दायित्व होता है कि जनता को वास्तविक खबरें पहुंचाने और आक्रोश को समाप्त करने का दायित्व निभाया जावें क्योंकि समाचार पत्र समाज का दर्पण कहलाता है। सचमुच यह किसी विशेष लेखक या पत्र संस्थान की बात नही लिखी गई आज पत्रकारिता किस स्तर पर पहुंच गई इसके बाबत पीड़ादायक स्थिति बन गई। जरुरत है शिक्षण प्रशिक्षण की, जरुरत है संपादक को जो स्वयं भी अपने नाक कान आंखें बंद कर पत्रकारिता में किसी भी संवाददाता पर भरोसा कर लें ,जो उसके पत्र संस्थान की मां सम्मान को चोटिल करने का कार्य कर बैठे। पत्रकारिता में रह कर आजीविका चलाना ठीक है लेकिन आजीविका के लिए पत्रकारिता करना ठीक नहीं है।